प्राचीन मंदिर

जौ के दाने के समान धरती में धंसता जा रहा है भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर। महाभारत काल से भी जुड़ी है इसकी रोचक कहानी

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में व्यास नदी के किनारे स्थित है एक प्राचीन मंदिर जिसे हम कालीनाथ कालेश्वर मंदिर के नाम से जानते हैं। यह मंदिर भगवान शिव और माता काली को समर्पित है। कालीनाथ कालेश्वर मंदिर को मिनी हरिद्वार भी कहा जाता है। महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है इसकी कहानी माना जाता है कि अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे और तब उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया था। माना जाता है कि पांडवों ने भारत के पंचतीर्थी हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक और रामेश्वरम का जल यहां के पानी में डाल दिया था तभी से इस मंदिर को पंचतीर्थी भी कहते है। यहां स्नान करने से मिलता है पंचतीर्थ स्नान करने का पुण्य और लोग दूर-दूर से यहां स्नान करने के लिए आते हैं।

माना जाता है कि यहां का शिवलिंग हर साल एक जौ दाने के समान धरती में धंसता जा रहा है और जब यह शिवलिंग पूरी तरह से धरती में समा जाएगा तब कलयुग का अंत होगा। यहां के शमशान में अंतिम संस्कार से लोगों को मोक्ष प्राप्त होता है। सावन के महीने में कालीनाथ कालेश्वर मंदिर में भारी भीड़ पाई जाती है और लोग दूर-दूर से भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं।

काली माता ने देवताओं की दानवों से कई बार रक्षा की है। ऋग्वेद के अनुसार जब काली माता ने दानवों का विनाश कर दिया था और उसके बाद भी काली माता का क्रोध शांत नहीं हो रहा था तो सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उन्हें माता का क्रोध शांत करने के लिए कहने लगे तब भगवान शिव भी मां काली माता का क्रोध शांत करवाना चाहते थे इसलिए भगवान शिव युद्ध भूमि पर लेट गए और माता काली का पैर उन पर पड़ गया। जब माता काली को इस बात एहसास हुआ तो वह एकदम शांत हो गई। माता काली को बार-बार अपनी इस गलती का पछतावा होता रहा और इसका प्रायश्चित करने के लिए मां काली ने इस स्थान पर तपस्या की थी और भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिए थे और इस पाप से मां काली को मुक्त कर दिया था। तब इस मंदिर का नाम काली नाथ कालेश्वर मंदिर पड़ा था।

Back To Top